नदी हूं मैं।

            

साफ और गहरी

बहती रहती हूं

कई नहीं ठहरती

बस बहती रहती हूं

वह घाटें मुझे रुकने

को कहते

पर 

मैं एक न सुनती

पास जाती हूं

बस छूकर

गुजर जाती हूं

कई घाटों से 

मेरा परिचय हैं

कुछ

बहुत अलग है

बिल्कुल मेरी तरह

साफ और गहरा

कुछ देर वहीं 

ठहरने का मन

करता है

पर 

बहना तो मेरा

स्वभाव है

बस छूकर 

गुजर जाती हूं

बस छूकर

गुजर जाती हूं


नदी हूं मैं।


                    - सरिता

Share:

0 comments:

Post a Comment

For suggestions / doubts / complaints