#अछूत स्त्री
हां,
खड़ी दुपहर में वह अछूत स्त्री है
पर,
रात हो जाती है, तो वह सबकी स्त्री
बन जाती है
उस रात का कोई जाति नहीं होती
कोई छुआ छूत नहीं होता
बस होता है, केवल
नोचना, खरोचना, कांटना
मिटाना, रुलाना और जलाना
उन्हें सुंदरता कभी बर्दाश नहीं होती
हमेशा सुंदर चीज़ों को असुंदर बनाने के
ख्याल में डूबे रहते हैं
कुछ वीर्य के बूंदे उसके अछूत योनि में
डालने के लिए तरसते हैं
उस रात एक भयानक घटना घटी..
जिस तरह कूड़ा कचरा को जला दिया जाता है
उसी तरह उसे भी जलाया जाता हैं
रातों रात राख बनाया जाता है
कई समाधियों के बीच
उसे भी एक समाधि का दर्जा दिया जाता है
कई लोग समाधि पर फूल चढ़ाने आते है
न्याय की मांग करते हैं
ये सब देखकर वह हंसती है
और कहती है-
'जिस इंसान का शरीर ही न रहा
उस इंसान को क्या न्याय दिया जा सकता है?
नहीं चाहिए मुझे कोई न्याय
क्योंकि मरा हुआ इंसान को
कभी न्याय नहीं दिलाया जा सकता।'
सरिता
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